Dhirendra Singh Rathore (रायपालोत)

सिर कटे और धङ लङे रखा राठौङी शान!
“"व्रजदेशा चन्दन वना, मेरुपहाडा मोड़ ! गरुड़ खंगा लंका गढा, राजकुल राठौड़ !! बलहट बँका देवड़ा, करतब बँका गौड़ ! हाडा बँका गाढ़ में, रण बँका राठौड़ !!"”

Friday, June 18, 2010

वीर शिरोमणि दुर्गादास राठोड़

इस ब्लॉग में लिखा हर एक शब्द बाड़मेर के पूर्व सांसद और श्री क्षत्रिय युवक संघ के संस्थापक स्व.श्री तन सिंह जी का लिखा हुआ है | स्व. तन सिंह जी को ज्यादातर लोग एक विधायक ,सांसद के तौर पर ही जानते है उन्हें लेखक के तौर पर नहीं , इसीलिए उनकी लेखनी से रूबरू कराने के उद्देश्य से उनकी रचनाएँ जो क्षत्रिय युवक संघ द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तकों से साभार लेकर यहाँ प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा हूँ ताकि अंतरजाल के माध्यम से श्री तन सिंह जी की विचारधारा व लेखनी जन-जन तक पहुँच सके |
Dhirendra Singh Rathore Thikana Aasop

वीर शिरोमणि दुर्गादास राठोड़


मेवाड़ के इतिहास में स्वामिभक्ति के लिए जहाँ पन्ना धाय का नाम आदर के साथ लिया जाता है वहीं मारवाड़ के इतिहास में त्याग,बलिदान,स्वामिभक्ति व देशभक्ति के लिए वीर दुर्गादास का नाम स्वर्ण अक्षरों में अमर है वीर दुर्गादास ने वर्षों मारवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया,ऐसे वीर पुरुष का जनम मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर सं. 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुवा था आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया
उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए
उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता,देशप्रेम,बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे १-मायाड ऐडा पुत जाण,जेड़ा दुर्गादास भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश
२-घर घोड़ों,खग कामनी,हियो हाथ निज मीतसेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत वीर दुर्गादास का निधन 22 nov. 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था "उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी "


सिमको पार्क अब होगा वीर दुर्गादास पार्क : मुख्यमंत्री ने की घोषणा, नाराज राठौर समाज हुआ खुश

सिमको पार्क अब होगा वीर दुर्गादास पार्क : मुख्यमंत्री ने की घोषणा, नाराज राठौर समाज हुआ खुश

ग्वालियर 21 जनवरी 09 । मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने एक रोमांचक घटनाक्रम के दौरान सिमको पार्क का नाम वीर दुर्गादास राठौर के नाम पर रखे जाने की घोषणा की । साथ ही आंदोलित राठौर समाज को यह कह कर शांत किया कि जल्दी ही वीर दुर्गादास की प्रतिमा स्थापित की जायेगी । उल्लेखनीय है कि राठौर समाज अरसे से वीर दुर्गादास राठौर की प्रतिमा स्थापित करने के प्रयास में लगा है ।

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान पुरानी छावनी में हुये विकास कार्यों का जायजा लेने पहुंचे थे । कुछ समय बाद उनका काफिला सिमको पार्क की ओर से गुजरा जहॉ पहले से ही राठौर समुदाय के लोग जमा थे । उन सभी की भाव भंगिमायें नाराजगी की थी । वहाँ सुरेन्द्र नाम का युवक वीर दुर्गादास की प्रतिमा स्थापना के लिये बनाये गये 11 फुट ऊँचे पेडस्टल पर चढ़ा हुआ था । भगवा वस्त्र पहने वह युवक चिल्ला रहा था मुख्यमंत्री जी मेरी भी सुनो, दुर्गादास की प्रतिमा लगवाओ । नहीं तो मैं आत्महत्या कर लूँगा ।

संवेदनशील मुख्यमंत्री चौहान ने तुरंत काफिला रूकवाया वे सीधे भीड़ को चीरते हुये 4-5 फुट ऊंचे पैडस्टल के पहले स्टेप पर चढ़ गये तथा पूरी बात समझ कर उन्होनें कहा कि सिमको पार्क का नाम अब वीर दुर्गादास राठौर पार्क होगा । उन्होंने राठौर समाज को आश्वस्त किया कि वीर दुर्गादास की प्रतिमा स्थापित करने के सार्थक प्रयास होंगें । मुख्यमंत्री की घोषणा सुनते ही भीड़ का गुस्सा शांत हो गया। उन्होंने संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिये कि वे वर्तमान प्रस्तावित स्थल सिमको पार्क में न्यायालय के निर्देशों के मद्देनजर सभी जरूरी कवायद शुरू करें ताकि प्रतिमा स्थापित कराई जा सके । मुख्यमंत्री की इन घोषणाओं का चमत्कारिक असर हुआ जो भीड़ नारे लगा रही थी अब वही भीड़ मुख्यमंत्री जी के जिन्दाबाद के नारे लगाने लगी और फूल मालाएँ पहनाने लगी । इधर जुनूनी सतीश जो आत्महत्या की बात कर रहा था मुख्यमंत्री जिन्दाबाद के नारे लगाने लगा ।

महान वीर और धर्मनिरपेक्ष इतिहास पुरूष थे वीर दुर्गादास
वीर दुर्गादास राठौर मध्ययुग के तत्कालीन मारवाड़ राज्य के शासक जसवंत सिंह के सरदार थे। बाद में वीर दुर्गादास ने मारवाड़ शासक अजीत सिंह के संरक्षक के रूप में भारतीय इतिहास में असाधारण अध्याय लिखे । वे मुगल शासन औरंगजेब के सफल प्रतिरोधक साबित हुये । तत्कालीन समय में औरंगजेब ने उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु माना था । इन सबसे परे वीर दुर्गादास राठौर महान धर्मनिरपेक्ष इतिहास पुरूष के रूप में याद किये जाते हैं। इतिहासकारों के मुताबिक वीर दुर्गादास ने औरंगजेब की लाड़ली बेटी का भी लालन-पालन किया था । वह भी इस्मालिक रीति रिवाज से । उनकी धर्मनिरपेक्षता की यह मिसाल युगों तक याद की जाती रहेगी ।


लेख सिर्फ जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है !

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