Dhirendra Singh Rathore (रायपालोत)

सिर कटे और धङ लङे रखा राठौङी शान!
“"व्रजदेशा चन्दन वना, मेरुपहाडा मोड़ ! गरुड़ खंगा लंका गढा, राजकुल राठौड़ !! बलहट बँका देवड़ा, करतब बँका गौड़ ! हाडा बँका गाढ़ में, रण बँका राठौड़ !!"”

Wednesday, October 20, 2010

यमराज का इस्तीफ़ा


यमराज का इस्तीफ़ा
एक दिन
यमदेव ने दे दिया
अपना इस्तीफ़ा।
मच गया हाहाकार
बिगड़ गया सब
संतुलन,
करने के लिए
स्थिति का आकलन,
इंद्रदेव ने देवताओं
की आपात सभा
बुलाई
और फिर यमराज
को कॉल लगाई।
'डायल किया गया
नंबर कृपया जांच लें'
कि आवाज़ तब सुनाई। नये-नये ऑफ़र देखकर नंबर बदलने की
यमराज की इस आदत पर इंद्रदेव को खुंदक आई,
पर मामले की नाजुकता को देखकर,
मन की बात उन्होंने मन में ही दबाई।
किसी तरह यमराज का नया नंबर मिला,
फिर से फ़ोन लगाया गया तो 'तुझसे है मेरा नाता पुराना कोई' का मोबाइल ने कॉलर ट्यून सुनाया।
सुन-सुन कर ये सब बोर हो गए ऐसा लगा शायद यमराज जी सो गए।
तहक़ीक़ात करने पर पता लगा, यमदेव पृथ्वी लोक में रोमिंग पे हैं, शायद इसलिए,
नहीं दे रहे हैं हमारी कॉल पे ध्यान, क्योंकि बिल भरने में निकल जाती है उनकी भी जान।
अन्त में किसी तरह यमराज हुए इंद्र के दरबार में पेश, इंद्रदेव ने तब पूछा-यम क्या है ये इस्तीफ़े का केस?
यमराज जी तब मुंह खोले और बोले- हे इंद्रदेव। 'मल्टीप्लैक्स' में जब भी जाता हूं, 'भैंसे' की पार्किंग
न होने की वजह से बिन फ़िल्म देखे, ही लौट के आता हूं। 'बरिस्ता' और 'मैकडोनल्ड' वाले तो देखते ही देखते
इज़्ज़त उतार देते हैं और सबके सामने ही ढाबे में जाकर खाने की सलाह दे देते हैं।
मौत के अपने काम पर जब पृथ्वीलोक जाता हूं 'भैंसे' पर मुझे देखकर पृथ्वीवासी भी हंसते हैं और कार न होने
के ताने कसते हैं।
भैंसे पर बैठे-बैठे झटके बड़े रहे हैं वायुमार्ग में भी अब ट्रैफ़िक बढ़ रहे हैं।
रफ़तार की इस दुनिया का मैं भैंसे से कैसे करूँगा पीछा।
आप कुछ समझ रहे हो या कुछ और दूं शिक्षा।
और तो और, देखो रंभा के पास है 'टोयटा' और उर्वशी को है आपने 'एसेंट' दिया, फिर मेरे साथ
ये अन्याय क्यों किया?
हे इंद्रदेव।
मेरे इस दुख को समझो और चार पहिए की जगह चार पैरों वाला दिया है कह कर अब मुझे न बहलाओ,
और जल्दी से 'मर्सीडिज़' मुझे दिलाओ। वरना मेरा इस्तीफ़ा अपने साथ ही लेकर जाओ।
और मौत का ये काम अब किसी और से करवाओ।

Wednesday, September 29, 2010

Bhopalgarh Village Detail's


ASOP आसोप ,ARTYIA अरटि‍याकलां ,BAGORIA बागोरि‍या,
BARA KALLA बाडाकलां
BARNI KHURD बारनी खुर्द
BASNI HARI SINGH बासनी हरि‍सि‍ह
BHOPALGARH भोपालगढ
BHUNDANA भुण्‍डाना

BIRANI बरानी

BURKIA बुडकि‍या

CHOWKARI KALLA चौकडीकलां,
DEWATRA देवातडा , GAJ SINGHPURA गजसि‍हपुरा GARASANI गारासनी, HEERADESAR हीरादेशर, KAGAL कागल, KHANGTA खांगटा, KHARIA KHANGAR खारि‍या खंगार, KHERI SALWA खेडीसालवा, KHWASPURA खवासपुरा ,KOOD कुड KOSANA कोसणा , KURI कुडी, MALAR मलार, MANGERIA मंगेरि‍या , NAGALWAS नागलवास ,NARSAR नाडसर, OSTRA उस्‍तरा , PALRI RANAWATA पालडी राणावता ,PALRI SIDHA पालडी सिद्वा , RAJLANI रजलानी, RAMDAWAS KALLA रामडावासकलां , RAMPURA रामपुरा ,RAROD रडौद , RATKURIA रतकुडि‍या , RUDIA रूदि‍या ,SALWA KHURD सालवाखुर्द ,SATHEEN साथीन ,SURPURA KHURD सुरपुराखुर्द.

Wednesday, August 11, 2010

Happy Independence Day

Happy Independence Day




Independence Day: Aaj ka din Bharat k liyai Sabsai bada Din hai.

Aaj kai din BHARAT Gorai Logo ki gulami sai azzad hua tha or Ek nayai HINDUSTAN ka nirman kiya jisai

aaj pura sansaar INDIA bulata hai.


Kuch tasvirai 15 August Par Pais kar Raha hu:




1. GANDHI JI KI DANDI YATRA

2. INDEPENDENCE DAY THOUGHT

3. INDIA MAP WITH NATIONAL FLAG COLORS.

4. BAAPU WITH NATIONAL FLAG

5. AND LAST IS MY BEST WISHES OF ALL INDAIN, NON REGULAR INDIAN AND ALL OF WORLD

Wednesday, July 21, 2010

"The Wall" "BACKBONE" = Rahul Dravid


Rahul Dravid

Batting style: Right Handed-hand bat
Bowling style: Right Arm Off Break
Played for: Asia XI, ICC World XI, India
Roles played: Ex Skipper-Test,ODI | Batsman

ICC Rank:
* Test: Batting: 17 Bowling: 123
* ODI: Batting: 85 Bowling: 228

Home country: India
Born: January 11, 1973, Indore, Madhya Pradesh

Profile

India ko humaisa sai hi ek aisai great batting legends ki jarurat thi or Rahul Dravid nai us kami ko pura kiya. Rahul Dravid nai Sachin Tendulkar sai almost six years baad debut kiya par Dravid nai jayda time nahi liya Master Blaster ki Barabri karnai mai. Dravid ke run bananai ki techinic Sunil Gavaskar, Sachin Tendulkar or dusrai greats Batsmans sai kum nahi hai woh apni hi saili mai khailtai hai. Dravid k bat ka sound unkai shoots batatai hai. Rahul Dravid is a classical stroke player. Dravid kai har shoot mai style hai. Dravid kai pulls or cover drives shoots har koi khail nahi sakta. Dravid ki sincerity or humility ek adaars hai kisi bhi khiladi kai liyai. Yadhi ek selfless khiladi ki baat ki jayai to Dravid sabsai phaila khiladi hoga. Dravid nai keeping chod the jab team ko right combination ki jarurat thi or wapas jarurat padnai par keeping ka jimma bhi uthaya. Dravid ek SADDA - BAHAR khiladi raha hai. Dravid ko BACKBONE kaha jata hai indian batting ka. India ki batting Dravid par nirbhar karti thi. Rahul Dravid hi wo khiladi hai jisnai aapnai dum par West indies or England mai test series ke jeet ka swaad chakaya. " The Wall " nai shockingly resingned kar diya captaincy sai 2007 mai after a succesful England tour.



Matches Innings Runs NO Avg. SR 100's 50's
Test 139 240 11395 28 53.75 42.39 29 58
ODI 339 313 10765 40 39.43 71.19 12 82

Matches Innings Balls Runs Wickets BBI Avg. Econ.
Test 139 5 120 39 1 1/18 39 1.95
ODI 339 8 186 170 4 2/43 42.5 5.48


Catches Stumpings Runouts
Test 193 0 6
ODI 195 14 10

Matches Won Lost Tie No Result Win percentage
Test 25 8 6 0 11 32
ODI 79 42 33 0 4 53.16


Career Span:

Test:
1996-2010

ODI:
1996-2009

Test

Debut:
India Vs England at Lord's, London - Jun 20, 1996
Last played:
India Vs Bangladesh at Shere Bangla National Stadium, Dhaka - Jan 24, 2010

ODI

Debut:
India Vs Sri Lanka at The Padang, Singapore - Apr 03, 1996
Last played:
India Vs West Indies at New Wanderers Stadium, Johannesburg - Sep 30, 2009

It is little introduction Rahul Dravid


Dhirendra Singh Rathore, Thikana Aasop

Tuesday, June 29, 2010

मीराबाई

जीवन परिचय

कृष्णभक्ति शाखा की हिंदी की महान कवयित्री मीराबाई का जन्म संवत् १५७३ में जोधपुर में चोकड़ी नामक गाँव में हुआ था। इनका विवाह उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज जी के साथ हुआ था। ये बचपन से ही कृष्णभक्ति में रुचि लेने लगी थीं।

विवाह के थोड़े ही दिन के बाद आपके पति का स्वर्गवास हो गया था। पति के परलोकवास के बाद इनकी भक्ति दिन- प्रति- दिन बढ़ती गई। ये मंदिरों में जाकर वहाँ मौजूद कृष्णभक्तों के सामने कृष्णजी की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं।




मीराबाई का घर से निकाला जाना

मीराबाई का कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने कई बार मीराबाई को विष देकर मारने की कोशिश की। घर वालों के इस प्रकार के व्यवहार से परेशान होकर वह द्वारका और वृंदावन गईं। वह जहाँ जाती थीं, वहाँ लोगों का सम्मान मिलता था। लोग आपको देवियों के जैसा प्यार और सम्मान देते थे। इसी दौरान उन्होंने तुलसीदास को पत्र लिखा था :-




स्वस्ति श्री तुलसी कुलभूषण दूषन- हरन गोसाई।
बारहिं बार प्रनाम करहूँ अब हरहूँ सोक- समुदाई।।
घर के स्वजन हमारे जेते सबन्ह उपाधि बढ़ाई।
साधु- सग अरु भजन करत माहिं देत कलेस महाई।।
मेरे माता- पिता के समहौ, हरिभक्तन्ह सुखदाई।
हमको कहा उचित करिबो है, सो लिखिए समझाई।।


मीराबाई के पत्र का जबाव तुलसी दास ने इस प्रकार दिया:-

जाके प्रिय न राम बैदेही।
सो नर तजिए कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेहा।।
नाते सबै राम के मनियत सुह्मद सुसंख्य जहाँ लौ।
अंजन कहा आँखि जो फूटे, बहुतक कहो कहां लौ।।



मीरा द्वारा रचित ग्रंथ

मीराबाई ने चार ग्रंथों की रचना की--

- बरसी का मायरा
- गीत गोविंद टीका
- राग गोविंद
- राग सोरठ के पद


इसके अलावा मीराबाई के गीतों का संकलन "मीराबाई की पदावली' नामक ग्रन्थ में किया गया है।




मीराबाई की भक्ति

मीरा की भक्ति में माधुर्य- भाव काफी हद तक पाया जाता था। वह अपने इष्टदेव कृष्ण की भावना प्रियतम या पति के रुप में करती थी। उनका मानना था कि इस संसार में कृष्ण के अलावा कोई पुरुष है ही नहीं। कृष्ण के रुप की दीवानी थी--

बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरति, साँवरि, सुरति नैना बने विसाल।।
अधर सुधारस मुरली बाजति, उर बैजंती माल।
क्षुद्र घंटिका कटि- तट सोभित, नूपुर शब्द रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल।।



मीराबाई रैदास को अपना गुरु मानते हुए कहती हैं -

गुरु मिलिया रैदास दीन्ही ज्ञान की गुटकी।



इन्होंने अपने बहुत से पदों की रचना राजस्थानी मिश्रित भाषा में ही है। इसके अलावा कुछ विशुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा में भी लिखा है। इन्होंने जन्मजात कवियित्री न होने के बावजूद भक्ति की भावना में कवियित्री के रुप में प्रसिद्धि प्रदान की। मीरा के विरह गीतों में समकालीन कवियों की अपेक्षा अधिक स्वाभाविकता पाई जाती है। इन्होंने अपने पदों में श्रृंगार और शांत रस का प्रयोग विशेष रुप से किया है।

इनके एक पद --

मन रे पासि हरि के चरन।
सुभग सीतल कमल- कोमल त्रिविध - ज्वाला- हरन।
जो चरन प्रह्मलाद परसे इंद्र- पद्वी- हान।।
जिन चरन ध्रुव अटल कींन्हों राखि अपनी सरन।
जिन चरन ब्राह्मांड मेंथ्यों नखसिखौ श्री भरन।।
जिन चरन प्रभु परस लनिहों तरी गौतम धरनि।
जिन चरन धरथो गोबरधन गरब- मधवा- हरन।।
दास मीरा लाल गिरधर आजम तारन तरन।।

Dhirendra Singh Rathore, Thikana - Aasop
लेख सिर्फ जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है !

Wednesday, June 23, 2010

राणा रो सोयो दुःख जाग्यो

कन्हैया लाल सेठिया की कालजयी रचना

अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावडो ले भाग्यो |
नान्हो सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुःख जाग्यो ||

हूँ लड़यो घणो हूँ सहयो घणो
मेवाडी मान बचावण नै ,
हूँ पाछ नहीं राखी रण में
बेरयां रो खून बहावण में ,
जद याद करूँ हल्दी घाटी नैणा में रगत उतर आवै ,
सुख दुःख रो साथी चेतकडो सूती सी हूक जगा ज्यावै ,

पण आज बिलखतो देखूं हूं
जद राज कंवर नै रोटी नै ,
तो क्षात्र - धर्म नै भूलूं हूं
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
महला में छप्पन भोग जका मनवार बिना करता कोनी,
सोनै री थाल्याँ नीलम रै बाजोट बिना धरता कोनी ,

ऐ हाय जका करता पगल्या
फूलां री कंवळी सेजां पर ,
बै आज रुले भूखा तिसिया
हिंदवाणे सूरज रा टाबर ,
आ सोच हुई टूक तड़फ राणा री भीम बजर छाती ,
आँख्यां में आंसू भर बोल्या मै लिख स्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावल ऊँचो हियो लियां ,
चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराल भूत सी लियां छियां ,

मै झुकूं कियां ? है आण मनै
कुळ रा केशरियां बानां री ,
मै बुझुं कियां ? हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री ,
पण फेर अमर री सुण बुसक्याँ राणा रो हिवडो भर आयो ,
मै मानूं हूं दिल्लीस तनै समराट सनेसो कैवायो |
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो सपनूं सो सांचो ,
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच न फिर बांच्यो ,

कै आज हिमालो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सितळ ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुयो समराट विकळ,
बस दूत इशारों पा भाज्या पीथळ नै तुरत बुलावण नै ,
किरणां रो पीथळ आ पुग्यो आ सांचो भरम मिटावण नै ,

बीं वीर बांकू डै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो ,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो ,
बैरयां रै मन रो काँटों हो बीकाणू पूत खरारो हो ,
राठौड़ रणा में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो ,

आ बात पातस्या जाणे हो
घावां पर लूण लगावण नै ,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो
राणा री हार बंचावण नै ,
म्हे बाँध लियो है पीथळ सुण पिंजरे में जंगळी शेर पकड़ ,
आ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़ ?

मर डूब चलू भर पाणी में
बस झुन्ठा गाल बजावै हो ,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिडदावै हो ,
मै आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है ,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है ?

जद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी ,
निवै स्यूं धरती खसक गई
आँख्यां में भर आयो पाणी ,
पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूंठी है ,
राणा री पाघ सदा ऊँची राणा री आण अटूटी है |

ल्यो हुकुम हुवै तो लिख पूछूं
राणा नै कागद रै खातर ,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही है बोल्यो अकबर ,
म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याला रै सागै सोवैलो ,
म्हे आज सुणी है सूरजडो
बादळ री ओटा खोवैलो ,

म्हे आज सुणी है चातगडो
धरती रो पाणी पिवैलो ,
म्हे आज सुणी है हाथीडो
कूकर री जूणा जिवैलो ,

म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवैली रजपूती ,
म्हे आज सुणी है म्याना में
तरवार रवैली अब सूती ,
तो म्हांरो हिवडो कांपै है मुछ्याँ री मोड़ मरोड़ गई ,
पीथळ नै राणा लिख भेजो आ बात कठे तक गिणा सही ?

पीथळ रा आखर पढता ही
राणा री आंख्यां लाल हुई ,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं
नाहर री एक दकाल हुई ,

हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं
मेवाड़ धरा आजाद रवै ,
हूं घोर उजाडा में भटकूं
पण मन में मां री याद रवै ,
हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चूकाऊँला,
औ सीस पडे पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊँला,

पीथळ के खिमता बादळ री
जो रोकै सूर उगाळी नै ,
सिंघा री हाथळ सह लेवै
वा कूख मिली कद स्याळी नै ?

धरती रो पाणी पिवै इसी
चातक री चूंच बणी कोनी ,
कूकर री जूणा जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी ,

आं हाथां में तरवार थकां
कुण रांड कवै है रजपूती ?
म्याना रै बदले बैरयां री
छात्याँ में रैवै ली सूती ,
मेवाड़ धधकतो अंगारों आंध्यां में चमचम चमकैलो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग खांडो खड्कैलो ,

राखो थे मुछ्याँ एठ्योड़ी
लोही री नदी बहा दयूंला ,
हूं अथक लडूंला अकबर स्यूं
उज्ड्यो मेवाड़ बसा दयूंला ,
जद राणा रो सन्देश गयो पीथळ री छाती दूणी ही ,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनिया सूनी ही |


Dhirendra Singh Rathore, Thikana - Aasop

लेख सिर्फ जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है !

Friday, June 18, 2010

दुर्गादास ( Photos)





माई एडा पूत जण,जैडा दुर्गादास
मार मंडासो राख्यो बिन थाम्बे आकाश'





दुरगो आसकरण रो,नित उठ बागा जाये
अमल औरंग रो उतारे, दिल्ली धड़का खाए


Dhirendra Singh Rathore, Thikana Aasop

लेख सिर्फ जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है !

राठोड़ों का इतिहास Dhirendra Singh Rathore (रायपालोत)


राठोड़ों का इतिहास Dhirendra Singh Rathore

सिर कटे और धङ लङे रखा राठौङी शान!
“"व्रजदेशा चन्दन वना, मेरुपहाडा मोड़ ! गरुड़ खंगा लंका गढा, राजकुल राठौड़ !! बलहट बँका देवड़ा, करतब बँका गौड़ ! हाडा बँका गाढ़ में, रण बँका राठौड़ !!"”
जय माँ भवानी
वंश -सूर्यवंश
गोत्र -गोतम
नदी -सरयू
वृक्ष-नीम
कुलदेवी -पहली -बृहमाणी
दूसरी -राठेश्वरी
तीसरी -पथणी
चोथी -पंखनी अभी व्
पाचवी -नागणेचिया
निशान -पचरंगा
नगारा-रणजीत
शाखा -तेरह में से दानेसरा राजस्थान में है जो सूत्र -गोभिल प्रवर(तीन )-गोतम,वशिष्ट ,वाहस्पत्य
शिखा -दाहिनी
पितृ -सोम सायसर
पुरोहित -सेवड़
भाट-सिगेंलिया
ढोल -भंवर
तलवार -रणथली
घोड़ा -श्यामकर्ण
गुरु -वशिष्ट
भेरू-मंडोर
कुलदेवी स्थान -नागाणा जिला -बाड़मेर
कुण्ड -सूर्य
क्षेत्र -नारायण
चारण -रोहडिया
पुत्र -उषा
माला -रतन
धर्म -संन्यास ,वैष्णव
पूजा -नीम
तम्बू -भगवान
बन्दूक -सदन
घाट -हरिव्दार
देग -भुंजाई
शंख -दक्षिणवर्त
सिंहासन -चन्दन का
खांडा-जगजीत
बड-अक्षय
गाय-कपिला
पहाड़ -गांगेय
बिडद-रणबंका
उपाधि -कमधज
ढोली-देहधड़ा
बंधेज -वामी (बाया)
पाट-दाहिना
निकास -अयोध्या
चिन्ह -चिल
ईष्ट -सीताराम ,लक्ष्मीनारायण
It is also :- कश्यप ऋषि के घराने में राजा बली राठोड का वंश राठोड वंश कहलाया ऋषि वंश राठोड की उत्पत्ति सतयुग से आरम्भ होती है वेद - यजुर्वेद शाखा - दानेसरा गोत्र - कश्यप गुरु - शुक्राचार्य देवी - नाग्नेचिया पर्वत - मरुपात नगारा - विरद रंणबंका हाथी - मुकना घोड़ा - पिला घटा - तोप तम्बू झंडा - गगनचुम्बी साडी - नीम की तलवार - रण कँगण ईष्ट - शिव का तोप - द्न्कालु धनुष - वान्सरी निकाश - शोणितपुर (दानापुर) बास - कासी, कन्नोज, कांगडा राज्य, शोणितपुर, त्रिपुरा, पाली, मंडोवर, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, इडर, हिम्मतनगर, रतलाम, रुलाना, सीतामऊ, झाबुबा, कुशलगढ़, बागली, जिला-मालासी, अजमेरा आदि ठिकाना दानसेरा शाखा का है
राठोड़ राजपूतो की उत्तपति सूर्यवंशी राजा के राठ(रीढ़) से उत्तपन बालक से हुई है इस लिए ये राठोड कहलाये, राठोरो की वंशावली मे उनकी राजधानी कर्नाट और कन्नोज बतलाई गयी है!
राठोड सेतराग जी के पुत्र राव सीहा जी थे! मारवाड़ के राठोड़ उन ही के वंशज है! राव सीहा जी ने करीब 700 वर्ष पूर्व द्वारिका यात्रा के दोरान मारवाड़ मे आये और राठोड वंश की नीव रखी! राव सीहा जी राठोरो के आदि पुरुष थे !
अर्वाचीन राठोड शाखाएँ खेडेचा, महेचा , बाडमेरा , जोधा , मंडला , धांधल , बदावत , बणीरोत , चांदावत , दुदावत , मेड़तिया , चापावत , उदावत , कुम्पावत , जेतावत , करमसोत बड़ा , करमसोत छोटा , हल सुन्डिया , पत्तावत , भादावत , पोथल , सांडावत , बाढेल , कोटेचा , जैतमालोत , खोखर , वानर , वासेचा , सुडावत , गोगादे , पुनावत , सतावत , चाचकिया , परावत , चुंडावत , देवराज , रायपालोत , भारमलोत , बाला , कल्लावत , पोकरना . गायनेचा , शोभायत , करनोत , पपलिया , कोटडिया , डोडिया , गहरवार , बुंदेला , रकेवार , बढ़वाल , हतुंधिया , कन्नोजिया , सींथल , ऊहड़ , धुहडिया , दनेश्वरा , बीकावत , भादावत , बिदावत आदि......
Mertiya Rathores: मेडतिया रघुनाथ रे मुख पर बांकी मुछ भागे हाथी शाह रा करके ऊँची पुंछ
मेडतिया रघुनाथ रासो, लड़कर राखयो मान, जीवत जी गैंग पहुंचा, दियो बावन तोला हाड ,
हु खप जातो खग तले, कट जातो उण ठोड ! बोटी-बोटी बिखरती, रेतो रण राठोड !!
मरण नै मेडतिया अर राज करण नै जौधा "
"मरण नै दुदा अर जान(बारात) में उदा "
उपरोक्त कहावतों में मेडतिया राठोडों को आत्मोत्सर्ग में अग्रगण्य तथा युद्ध कौशल में प्रवीण मानते हुए मृत्यु को वरण करने के लिए आतुर कहा गया है मेडतिया राठोडों ने शौर्य और बलिदान के एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए है


हरवळ भालां हाँकिया, पिसण फिफ्फरा फौड़। विडद जिणारौ वरणियौ, रण बंका राठौड़ ॥ किरची किरची किरकिया, ठौड़ ठौड़ रण ठौड़। मरुकण बण चावळ मरद, रण रचिया राठौड़ ॥ पतसाहाँ दळ पाधरा, मुरधर धर का मौड़। फणधर जेम फुंकारिया, रण बंका राठौड़ ॥ सिर झड़ियां जुडिया समर, धूमै रण चढ़ घौड़। जोधा कमधज जाणिया, रण बंका राठौड़ ॥ सातां पुरखाँ री सदा, ठावी रहै न ठौड़। साहाँ रा मन संकिया, रण संकै राठौड़ ॥ हाको सुण हरखावणो, आरण आप अरौड़। रण परवाड़ा रावळा, रण बंका राठौड़ ॥
अजमल थारी पारख जद जाणी, दुर्गा छिप्रा दागियों गोलों घर गागोणी
वीर शिरोमणि दुर्गादास राठोड़मेवाड़ के इतिहास में स्वामिभक्ति के लिए जहाँ पन्ना धाय का नाम आदर के साथ लिया जाता है वहीं मारवाड़ के इतिहास में त्याग,बलिदान,स्वामिभक्ति व देशभक्ति के लिए वीर दुर्गादास का नाम स्वर्ण अक्षरों में अमर है वीर दुर्गादास ने वर्षों मारवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया,ऐसे वीर पुरुष का जनम मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर सं. 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुवा था आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया
उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए
उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता,देशप्रेम,बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे १-मायाड ऐडा पुत जाण,जेड़ा दुर्गादास भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश
२-घर घोड़ों,खग कामनी,हियो हाथ निज मीतसेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत वीर दुर्गादास का निधन 22 nov. 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था "उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी "



महाराजा पृथ्वीराज राठौर बीकानेर का राव रामदासजी बलुन्दा के गो रक्षा के लिया लड़े युद्घ और वीरगति पार लिखा दोहा :

विप्र बचावाएँ कारणे, बजे जुझारू ढोल !!

चढ़ चांदा रा पाटवी, बदी जाये निम्बोल

रामदास तद राम भज, चदया तुरका लार !!

तुरकारा तुन्डल करे ,विप्र छुडावन सार !!

रावचांदाजी बलुन्दा के कोलुमंड युद्घ पार :

कोलुमंड झगडो होओ, दीयो न हीणों भावः

बाज़ी मरुधर देश री ,राखी चांदा राव !!

दिल्ही मत जाओ बादशाह क नेडो सरसी काज !!

चांदा विरमदेव रो करे बलुन्दे राज !!

हु खप जातो खग तले, कट जातो उण ठोड !

बोटी-बोटी बिखरती, रेतो रण राठोड !!

Famous song about Rathores

हरवळ भालां हाँकिया, पिसण फिफ्फरा फौड़।

विडद जिणारौ वरणियौ, रण बंका राठौड़ ॥

किरची किरची किरकिया, ठौड़ ठौड़ रण ठौड़।

मरुकण बण चावळ मरद, रण रचिया राठौड़ ॥

पतसाहाँ दळ पाधरा, मुरधर धर का मौड़।

फणधर जेम फुंकारिया, रण बंका राठौड़ ॥

सिर झड़ियां जुडिया समर, धूमै रण चढ़ घौड़।

जोधा कमधज जाणिया, रण बंका राठौड़ ॥

सातां पुरखाँ री सदा, ठावी रहै न ठौड़।

साहाँ रा मन संकिया, रण संकै राठौड़ ॥

हाको सुण हरखावणो, आरण आप अरौड़।

रण परवाड़ा रावळा, रण बंका राठौड़ ॥

Some very famous dohe couplets of Durgadas

अजमल थारी पारख जद जाणी,

दुर्गा छिप्रा दागियों गोलों घर गागोणी

AATH PAHAR CHOBIS GHADI, GHUDLE UPAR VAAS

SAIL ANI SU SEKTO BAATI DURGADAS

Suvaran thala, jime bhup anek

Durgo bhala upra, khadi bati sek

Rajvansh ne rakhiyo shyam dharm marudesh

badla me rakhyo nahi, do ghaj dhar Durgesh

Mitio kalank ajit ro, Gaj layo Durgesh

Durgobabo khush huyo, aakar marudhar desh

Durga Aaskaran ro, as chadhion din-raat

Kshipra tat the dagio, dagan mili na haat

Ek din Aurang yun kahiyo, baalo thanne kain vishesh,

munh maange jinka mile, munh su maang thu Durgesh.

DHAMBAK-DHAMBAK DHOL BAJE, DE DE THOR NANGARA KI,

AASE GHAR DURGA NANHI HOTO, SUNNAT HOTI SARA KI THIS IS COINED BY RAMU JAT

Ab rang ghor andhar, jot mite raja Jase,

tun durga teen baar, aandha lakdi Aasaut

Durga Aaskaran ra nitare baagou jaay

amal Auranga utare, Dilli dhadka khay

Rudra roop ran rith me, sab suran seermodh,

maniyan maayn sumer jyun, rang Durga Rathore by Poet Narayan Singh Shivakar

Jaswant kahiyo joy, ghar rakhawalo goodada

sanchi kidhi soy, aachhi Aaskaran wat

Mukund jaidev Gora Jasdhari

Dhin Durgo rakhio Ajmaal it is mentioned in famous Marwar song "Dhunsa"

Durgadas Rathore by Kamal Singh Bemla

Raja vah tha nahi, ek sadharan sa rajput tha,

rajao ke mastak jhuk jate the, aisa vah saput tha




लेख सिर्फ जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है !