Dhirendra Singh Rathore (रायपालोत)

सिर कटे और धङ लङे रखा राठौङी शान!
“"व्रजदेशा चन्दन वना, मेरुपहाडा मोड़ ! गरुड़ खंगा लंका गढा, राजकुल राठौड़ !! बलहट बँका देवड़ा, करतब बँका गौड़ ! हाडा बँका गाढ़ में, रण बँका राठौड़ !!"”

Friday, June 18, 2010

राठोड़ों का इतिहास Dhirendra Singh Rathore (रायपालोत)


राठोड़ों का इतिहास Dhirendra Singh Rathore

सिर कटे और धङ लङे रखा राठौङी शान!
“"व्रजदेशा चन्दन वना, मेरुपहाडा मोड़ ! गरुड़ खंगा लंका गढा, राजकुल राठौड़ !! बलहट बँका देवड़ा, करतब बँका गौड़ ! हाडा बँका गाढ़ में, रण बँका राठौड़ !!"”
जय माँ भवानी
वंश -सूर्यवंश
गोत्र -गोतम
नदी -सरयू
वृक्ष-नीम
कुलदेवी -पहली -बृहमाणी
दूसरी -राठेश्वरी
तीसरी -पथणी
चोथी -पंखनी अभी व्
पाचवी -नागणेचिया
निशान -पचरंगा
नगारा-रणजीत
शाखा -तेरह में से दानेसरा राजस्थान में है जो सूत्र -गोभिल प्रवर(तीन )-गोतम,वशिष्ट ,वाहस्पत्य
शिखा -दाहिनी
पितृ -सोम सायसर
पुरोहित -सेवड़
भाट-सिगेंलिया
ढोल -भंवर
तलवार -रणथली
घोड़ा -श्यामकर्ण
गुरु -वशिष्ट
भेरू-मंडोर
कुलदेवी स्थान -नागाणा जिला -बाड़मेर
कुण्ड -सूर्य
क्षेत्र -नारायण
चारण -रोहडिया
पुत्र -उषा
माला -रतन
धर्म -संन्यास ,वैष्णव
पूजा -नीम
तम्बू -भगवान
बन्दूक -सदन
घाट -हरिव्दार
देग -भुंजाई
शंख -दक्षिणवर्त
सिंहासन -चन्दन का
खांडा-जगजीत
बड-अक्षय
गाय-कपिला
पहाड़ -गांगेय
बिडद-रणबंका
उपाधि -कमधज
ढोली-देहधड़ा
बंधेज -वामी (बाया)
पाट-दाहिना
निकास -अयोध्या
चिन्ह -चिल
ईष्ट -सीताराम ,लक्ष्मीनारायण
It is also :- कश्यप ऋषि के घराने में राजा बली राठोड का वंश राठोड वंश कहलाया ऋषि वंश राठोड की उत्पत्ति सतयुग से आरम्भ होती है वेद - यजुर्वेद शाखा - दानेसरा गोत्र - कश्यप गुरु - शुक्राचार्य देवी - नाग्नेचिया पर्वत - मरुपात नगारा - विरद रंणबंका हाथी - मुकना घोड़ा - पिला घटा - तोप तम्बू झंडा - गगनचुम्बी साडी - नीम की तलवार - रण कँगण ईष्ट - शिव का तोप - द्न्कालु धनुष - वान्सरी निकाश - शोणितपुर (दानापुर) बास - कासी, कन्नोज, कांगडा राज्य, शोणितपुर, त्रिपुरा, पाली, मंडोवर, जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, इडर, हिम्मतनगर, रतलाम, रुलाना, सीतामऊ, झाबुबा, कुशलगढ़, बागली, जिला-मालासी, अजमेरा आदि ठिकाना दानसेरा शाखा का है
राठोड़ राजपूतो की उत्तपति सूर्यवंशी राजा के राठ(रीढ़) से उत्तपन बालक से हुई है इस लिए ये राठोड कहलाये, राठोरो की वंशावली मे उनकी राजधानी कर्नाट और कन्नोज बतलाई गयी है!
राठोड सेतराग जी के पुत्र राव सीहा जी थे! मारवाड़ के राठोड़ उन ही के वंशज है! राव सीहा जी ने करीब 700 वर्ष पूर्व द्वारिका यात्रा के दोरान मारवाड़ मे आये और राठोड वंश की नीव रखी! राव सीहा जी राठोरो के आदि पुरुष थे !
अर्वाचीन राठोड शाखाएँ खेडेचा, महेचा , बाडमेरा , जोधा , मंडला , धांधल , बदावत , बणीरोत , चांदावत , दुदावत , मेड़तिया , चापावत , उदावत , कुम्पावत , जेतावत , करमसोत बड़ा , करमसोत छोटा , हल सुन्डिया , पत्तावत , भादावत , पोथल , सांडावत , बाढेल , कोटेचा , जैतमालोत , खोखर , वानर , वासेचा , सुडावत , गोगादे , पुनावत , सतावत , चाचकिया , परावत , चुंडावत , देवराज , रायपालोत , भारमलोत , बाला , कल्लावत , पोकरना . गायनेचा , शोभायत , करनोत , पपलिया , कोटडिया , डोडिया , गहरवार , बुंदेला , रकेवार , बढ़वाल , हतुंधिया , कन्नोजिया , सींथल , ऊहड़ , धुहडिया , दनेश्वरा , बीकावत , भादावत , बिदावत आदि......
Mertiya Rathores: मेडतिया रघुनाथ रे मुख पर बांकी मुछ भागे हाथी शाह रा करके ऊँची पुंछ
मेडतिया रघुनाथ रासो, लड़कर राखयो मान, जीवत जी गैंग पहुंचा, दियो बावन तोला हाड ,
हु खप जातो खग तले, कट जातो उण ठोड ! बोटी-बोटी बिखरती, रेतो रण राठोड !!
मरण नै मेडतिया अर राज करण नै जौधा "
"मरण नै दुदा अर जान(बारात) में उदा "
उपरोक्त कहावतों में मेडतिया राठोडों को आत्मोत्सर्ग में अग्रगण्य तथा युद्ध कौशल में प्रवीण मानते हुए मृत्यु को वरण करने के लिए आतुर कहा गया है मेडतिया राठोडों ने शौर्य और बलिदान के एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए है


हरवळ भालां हाँकिया, पिसण फिफ्फरा फौड़। विडद जिणारौ वरणियौ, रण बंका राठौड़ ॥ किरची किरची किरकिया, ठौड़ ठौड़ रण ठौड़। मरुकण बण चावळ मरद, रण रचिया राठौड़ ॥ पतसाहाँ दळ पाधरा, मुरधर धर का मौड़। फणधर जेम फुंकारिया, रण बंका राठौड़ ॥ सिर झड़ियां जुडिया समर, धूमै रण चढ़ घौड़। जोधा कमधज जाणिया, रण बंका राठौड़ ॥ सातां पुरखाँ री सदा, ठावी रहै न ठौड़। साहाँ रा मन संकिया, रण संकै राठौड़ ॥ हाको सुण हरखावणो, आरण आप अरौड़। रण परवाड़ा रावळा, रण बंका राठौड़ ॥
अजमल थारी पारख जद जाणी, दुर्गा छिप्रा दागियों गोलों घर गागोणी
वीर शिरोमणि दुर्गादास राठोड़मेवाड़ के इतिहास में स्वामिभक्ति के लिए जहाँ पन्ना धाय का नाम आदर के साथ लिया जाता है वहीं मारवाड़ के इतिहास में त्याग,बलिदान,स्वामिभक्ति व देशभक्ति के लिए वीर दुर्गादास का नाम स्वर्ण अक्षरों में अमर है वीर दुर्गादास ने वर्षों मारवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया,ऐसे वीर पुरुष का जनम मारवाड़ में करनोत ठाकुर आसकरण जी के घर सं. 1695 श्रावन शुक्ला चतुर्दसी को हुवा था आसकरण जी मारवाड़ राज्य की सेना में जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह जी की सेवा में थे अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता कूट कूट कर भरी थी,एक बार जोधपुर राज्य की सेना के ऊंटों को चराते हुए राईके (ऊंटों के चरवाहे) आसकरण जी के खेतों में घुस गए, बालक दुर्गादास के विरोध करने पर भी चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास का खून खोल उठा और तलवार निकाल कर झट से ऊंट की गर्दन उड़ा दी,इसकी खबर जब महाराज जसवंत सिंह जी के पास पहुंची तो वे उस वीर बालक को देखने के लिए उतावले हो उठे व अपने सेनिकों को दुर्गादास को लेन का हुक्म दिया अपने दरबार में महाराज उस वीर बालक की निडरता व निर्भीकता देख अचंभित रह गए,आस्करण जी ने अपने पुत्र को इतना बड़ा अपराध निर्भीकता से स्वीकारते देखा तो वे सकपका गए परिचय पूछने पर महाराज को मालूम हुवा की यह आस्करण जी का पुत्र है,तो महाराज ने दुर्गादास को अपने पास बुला कर पीठ थपथपाई और इनाम तलवार भेंट कर अपनी सेना में भर्ती कर लिया
उस समय महाराजा जसवंत सिंह जी दिल्ली के मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सेना में प्रधान सेनापति थे,फिर भी औरंगजेब की नियत जोधपुर राज्य के लिए अच्छी नहीं थी और वह हमेशा जोधपुर हड़पने के लिए मौके की तलाश में रहता था सं. 1731 में गुजरात में मुग़ल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह को दबाने हेतु जसवंत सिंह जी को भेजा गया,इस विद्रोह को दबाने के बाद महाराजा जसवंत सिंह जी काबुल में पठानों के विद्रोह को दबाने हेतु चल दिए और दुर्गादास की सहायता से पठानों का विद्रोह शांत करने के साथ ही वीर गति को प्राप्त हो गए
उस समय उनके कोई पुत्र नहीं था और उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी,दोनों ने एक एक पुत्र को जनम दिया,एक पुत्र की रास्ते में ही मौत हो गयी और दुसरे पुत्र अजित सिंह को रास्ते का कांटा समझ कर ओरंग्जेब ने अजित सिंह की हत्या की ठान ली,ओरंग्जेब की इस कुनियत को स्वामी भक्त दुर्गादास ने भांप लिया और मुकंदास की सहायता से स्वांग रचाकर अजित सिंह को दिल्ली से निकाल लाये व अजित सिंह की लालन पालन की समुचित व्यवस्था करने के साथ जोधपुर में गदी के लिए होने वाले ओरंग्जेब संचालित षड्यंत्रों के खिलाफ लोहा लेते अपने कर्तव्य पथ पर बदते रहे अजित सिंह के बड़े होने के बाद गद्दी पर बैठाने तक वीर दुर्गादास को जोधपुर राज्य की एकता व स्वतंत्रता के लिए दर दर की ठोकरें खानी पड़ी,ओरंग्जेब का बल व लालच दुर्गादास को नहीं डिगा सका जोधपुर की आजादी के लिए दुर्गादास ने कोई पच्चीस सालों तक सघर्ष किया,लेकिन जीवन के अन्तिम दिनों में दुर्गादास को मारवाड़ छोड़ना पड़ा महाराज अजित सिंह के कुछ लोगों ने दुर्गादास के खिलाफ कान भर दिए थे जिससे महाराज दुर्गादास से अनमने रहने लगे वस्तु स्तिथि को भांप कर दुर्गादास ने मारवाड़ राज्य छोड़ना ही उचित समझा और वे मारवाड़ छोड़ कर उज्जेन चले गए वही शिप्रा नदी के किनारे उन्होने अपने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे व वहीं उनका स्वर्गवास हुवा दुर्गादास हमारी आने वाली पिडियों के लिए वीरता,देशप्रेम,बलिदान व स्वामिभक्ति के प्रेरणा व आदर्श बने रहेंगे १-मायाड ऐडा पुत जाण,जेड़ा दुर्गादास भार मुंडासा धामियो, बिन थम्ब आकाश
२-घर घोड़ों,खग कामनी,हियो हाथ निज मीतसेलां बाटी सेकणी, श्याम धरम रण नीत वीर दुर्गादास का निधन 22 nov. 1718 में हुवा था इनका अन्तिम संस्कार शिप्रा नदी के तट पर किया गया था "उनको न मुगलों का धन विचलित कर सका और न ही मुग़ल शक्ति उनके दृढ हृदये को पीछे हटा सकी वह एक वीर था जिसमे राजपूती साहस व मुग़ल मंत्री सी कूटनीति थी "



महाराजा पृथ्वीराज राठौर बीकानेर का राव रामदासजी बलुन्दा के गो रक्षा के लिया लड़े युद्घ और वीरगति पार लिखा दोहा :

विप्र बचावाएँ कारणे, बजे जुझारू ढोल !!

चढ़ चांदा रा पाटवी, बदी जाये निम्बोल

रामदास तद राम भज, चदया तुरका लार !!

तुरकारा तुन्डल करे ,विप्र छुडावन सार !!

रावचांदाजी बलुन्दा के कोलुमंड युद्घ पार :

कोलुमंड झगडो होओ, दीयो न हीणों भावः

बाज़ी मरुधर देश री ,राखी चांदा राव !!

दिल्ही मत जाओ बादशाह क नेडो सरसी काज !!

चांदा विरमदेव रो करे बलुन्दे राज !!

हु खप जातो खग तले, कट जातो उण ठोड !

बोटी-बोटी बिखरती, रेतो रण राठोड !!

Famous song about Rathores

हरवळ भालां हाँकिया, पिसण फिफ्फरा फौड़।

विडद जिणारौ वरणियौ, रण बंका राठौड़ ॥

किरची किरची किरकिया, ठौड़ ठौड़ रण ठौड़।

मरुकण बण चावळ मरद, रण रचिया राठौड़ ॥

पतसाहाँ दळ पाधरा, मुरधर धर का मौड़।

फणधर जेम फुंकारिया, रण बंका राठौड़ ॥

सिर झड़ियां जुडिया समर, धूमै रण चढ़ घौड़।

जोधा कमधज जाणिया, रण बंका राठौड़ ॥

सातां पुरखाँ री सदा, ठावी रहै न ठौड़।

साहाँ रा मन संकिया, रण संकै राठौड़ ॥

हाको सुण हरखावणो, आरण आप अरौड़।

रण परवाड़ा रावळा, रण बंका राठौड़ ॥

Some very famous dohe couplets of Durgadas

अजमल थारी पारख जद जाणी,

दुर्गा छिप्रा दागियों गोलों घर गागोणी

AATH PAHAR CHOBIS GHADI, GHUDLE UPAR VAAS

SAIL ANI SU SEKTO BAATI DURGADAS

Suvaran thala, jime bhup anek

Durgo bhala upra, khadi bati sek

Rajvansh ne rakhiyo shyam dharm marudesh

badla me rakhyo nahi, do ghaj dhar Durgesh

Mitio kalank ajit ro, Gaj layo Durgesh

Durgobabo khush huyo, aakar marudhar desh

Durga Aaskaran ro, as chadhion din-raat

Kshipra tat the dagio, dagan mili na haat

Ek din Aurang yun kahiyo, baalo thanne kain vishesh,

munh maange jinka mile, munh su maang thu Durgesh.

DHAMBAK-DHAMBAK DHOL BAJE, DE DE THOR NANGARA KI,

AASE GHAR DURGA NANHI HOTO, SUNNAT HOTI SARA KI THIS IS COINED BY RAMU JAT

Ab rang ghor andhar, jot mite raja Jase,

tun durga teen baar, aandha lakdi Aasaut

Durga Aaskaran ra nitare baagou jaay

amal Auranga utare, Dilli dhadka khay

Rudra roop ran rith me, sab suran seermodh,

maniyan maayn sumer jyun, rang Durga Rathore by Poet Narayan Singh Shivakar

Jaswant kahiyo joy, ghar rakhawalo goodada

sanchi kidhi soy, aachhi Aaskaran wat

Mukund jaidev Gora Jasdhari

Dhin Durgo rakhio Ajmaal it is mentioned in famous Marwar song "Dhunsa"

Durgadas Rathore by Kamal Singh Bemla

Raja vah tha nahi, ek sadharan sa rajput tha,

rajao ke mastak jhuk jate the, aisa vah saput tha




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